अफ़्रीकी युवक को पीट पीट कर मार डाला
अथिति
देवो भव कहने वाले हमारे देश के नागरिक न जाने इन शब्दों क्या अर्थ का लगाते है?संस्कृति
को धूमिल करने और भारतीय रिवाजों को आलोचना पूर्ण बनाने वाले ये भी नहीं सोचते कि
सभ्यता
और संस्कारो की मिसाल देने वाले भारत के संस्कारो को मिथ्या बनाने का कार्य इन्ही
लोगो
के
द्वारा करित किया जा रहा है |
आये दिनों नए नए प्रलेखो में ऐसे न जाने कितनी
घटनाये सामने आती है जो हमारी सभ्यता को धूमिल
करती हैं |
जैसा की हाल ही मे अभी अफ़्रीकी युवक की मौत की
घटना सामने आई है, इस युवक की हत्या दिल्ली के कुछ नव युवको ने बेरहमी कर दी । इस तरह की घटनाओ से हमारे समाज की किस तरह की छवि अन्य देशो पर पड़ेगी ?
यह
युवक अफ्रीका के कागों का मूल निवासी था। इस की उम्र तक़रीबन २३ वर्ष थी । यह दिल्ली
के साऊथ एक्स में अपने दोस्त साथ रहता था और फ्रेंच भाषा का टीचर था । किशनगढ़ मे अपने
दोस्त से मिल कर वापस आने के लिए ऑटो कर रहा था उस समय उसका दोस्त सेम भी मौका-ए-वारदात
पर मौजूद था, तभी कुछ अनजान तीन युवको से ऑटो को लेकर बहस शुरू हो गयी वें उसी ऑटो से महरौली जाना चाहते थे, बहस साथ साथ ही
मर पीट भी शूरू कर दी। उन्हों ने उस अफ़्रीकी युवक को २० मीटर तक घसीटे हुए पत्थरों और लाठियों
से उसे मारा कर उसे मृत समझ कर घटना स्थल से भगाए, पुलिस
विभाग के वरिष्ठ अधिकारी (D.C.P)
श्री ईश्वर सिंह जी ने बताया की यह घटना शुक्रवार को करीबन रात ११.३० को घटित हुई | सीसीटीवी
कैमरे मे कैद होने के कारण उन आरोपियों मे से मुख्य आरोपी मोबिन आज़ाद को अपनी
गिरफ्त मे ले लिया गया है, और बाकि अन्य दो युवको की खोज जारी है|
इस हादसे के बाद अफ्रीका के नागरिक बहुत
डरे हुए और सहमे से हैं। पुलिस अन्य आरोपियों की तलाश जारी रखे है |
कहा जाता है कि अनजान देश मे और अनजान लोग से
उचित दूरी बनाके रखने को माँ-बाप क्यों कहते है, क्यों की हमारे समाज मे आज भी इन
मोबिन आज़ाद जैसे आरोपी है ,जो अन्य देश से आये लोग की मदद कर के उन पर अपना आक्रोश दिखाते है ।बुराई हमारे द्वारा ही उत्पन्न की जाती है, पर जब वही बुराई हमारे साथ खुद घटित
होती है तो हम उन लोगो को दोष देते है जो बुरा करते है ।
जब बोये पेड़ बबूल के तो आम कहा से खाओगे शायद इस मुहावरे को दिल्ली की जनता भूलती
जा रही है, ये किसा आज का नही न जाने कितने सालो से हम ऐसे दुस्कृत करते आ रहे है और इसे
ना जाने क्या क्या नाम देते आ रहे है कभी
धर्म, कभी नस्लीय हिंसा कभी न जाने किन किन विवादों को मुद्दा बना देते है पर खुद
के द्वारा किया गया कृत नहीं मानते |
सोच बदले, समाज बदलेगा:
सोच
बदलने की बात से याद आया की हम हर साल विजयादशमी का पर्व मानते है जो की बुराई पर
अच्छाई की जीत का प्रतीक है और हर साल
रावण को जलाते भी है, महान ज्ञानी होने के वावजूद उसने भी अपनी ताकत की मद मे अपने
वंश का विनाश किया था और अपने गौरव को धुलधुसरित किया था, तो आप सबसे से विनम्र
निवेदन है की अपने समाज और अपने देश के गौरव को धुलधुसरित मत करें |
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