Tuesday, 16 August 2016
आरती देवी अन्नपूर्णा जी की
tesu
11:46:00
आरती देवी अन्नपूर्णा जी की
Annapoorana Devi Aarti in Hindi
बारम्बार प्रणाम, मैया बारम्बार
प्रणाम...
जो नहीं ध्यावे
तुम्हें अम्बिके, कहां उसे
विश्राम।
प्रलय युगान्तर और जन्मान्तर,
कालान्तर तक नाम।
सुर सुरों की रचना
करती, कहाँ कृष्ण
कहाँ राम॥ बारम्बार...
चूमहि चरण चतुर
चतुरानन, चारु चक्रधर
श्याम।
देवि देव! दयनीय
दशा में दया-दया तब
नाम।
त्राहि-त्राहि शरणागत वत्सल
शरण रूप तब
धाम॥ बारम्बार...
श्रीं, ह्रीं श्रद्धा श्री
ऐ विद्या श्री
क्लीं कमला काम।
कांति, भ्रांतिमयी, कांति शांतिमयी,
वर दे तू
निष्काम॥ बारम्बार...
श्री सरस्वती जी की आरती
tesu
11:15:00
श्री सरस्वती जी की आरती
Shri Saraswati Aarti in Hindi
कज्जल पुरित लोचन भारे, स्तन युग शोभित मुक्त हारे |
वीणा पुस्तक रंजित हस्ते, भगवती भारती देवी नमस्ते॥
जय सरस्वती माता ,जय जय हे सरस्वती माता |
दगुण वैभव शालिनी ,त्रिभुवन विख्याता॥
जय सरस्वती माता ,जय जय हे सरस्वती माता |
चंद्रवदनि पदमासिनी , घुति मंगलकारी ||
सोहें शुभ हंस सवारी,अतुल तेजधारी |
जय सरस्वती माता ,जय जय हे सरस्वती माता ||
बायेँ कर में वीणा ,दायें कर में माला |
शीश मुकुट मणी सोहें ,गल मोतियन माला ॥
जय सरस्वती माता ,जय जय हे सरस्वती माता |
देवी शरण जो आयें ,उनका उद्धार किया ||
पैठी मंथरा दासी, रावण संहार किया |
जय सरस्वती माता ,जय जय हे सरस्वती माता ||
विद्या ज्ञान प्रदायिनी , ज्ञान प्रकाश भरो |
मोह और अज्ञान तिमिर का जग से नाश करो ||
जय सरस्वती माता ,जय जय हे सरस्वती माता |
धुप ,दिप फल मेवा माँ स्वीकार करो ||
ज्ञानचक्षु दे माता , भव से उद्धार करो |
जय सरस्वती माता ,जय जय हे सरस्वती माता ||
माँ सरस्वती जी की आरती जो कोई नर गावें |
हितकारी ,सुखकारी ग्यान भक्ती पावें ॥
सरस्वती माता ,जय जय हे सरस्वती माता |
सदगुण वैभव शालिनी ,त्रिभुवन विख्याता॥
जय सरस्वती माता ,जय जय हे सरस्वती माता |
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श्री-संकटमोचन-हनुमानाष्टक
tesu
09:54:00
श्री संकटमोचन हनुमानाष्टक
Sankatmochan Hanumanashtak
बाल समय रवि
भक्षी लियो तब,
तीनहुं लोक भयो
अँधियारो I
ताहि सो त्रास
भयो जग को,
यह संकट काहू
सो जात न
टारो II
देवन आनि करी
बिनती तब, छाड़
दियो रवि कष्ट
निवारो I
बालि की त्रास
कपीस बसे गिरि,
जात महा प्रभु
पंथ निहारो I
चौंकि महा मुनि
श्राप दियो तब,
चाहिये कौन बिचार
बिचारो II
कै द्विज रूप लिवाय
महाप्रभु, सो तुम
दास के शोक
निवारो I
को नहीं जानत
है जग में
कपि, संकट मोचन
नाम तिहारो II
अंगद के संग
लेन गये सिया,
खोज कपीस यह
बैन उचारो I
जीवत ना बचिहौ
हम सो जो,
बिना सुधि लाये
यहाँ पगु धारौ
II
हेरि थके तट
सिन्धु सबै तब,
लाये सिया सुधि
प्राण उबारो I
रावण त्रास दई सिया
को तब, राक्षसि
सों कहि शोक
निवारो I
ताहि समय हनुमान
महाप्रभु, जाय महा
रजनी चर मारो
II
चाहत सिया अशोक
सों आगि सु,
दें प्रभु मुद्रिका
शोक निवारो I
को नहीं जानत
है जग में
कपि, संकट मोचन
नाम तिहारो II
बाण लाग्यो उर लक्ष्मण
के तब, प्राण
तज्यो सुत रावण
मारो I
ले गृह वैद्य
सुषेन समेत, तबै
गिरि द्रोण सो
वीर उपारो II
आनि सजीवन हाथ दई
तब, लक्ष्मण के
तुम प्राण उबारो
I
रावण युद्ध अजान कियो
तब, नाग कि
फाँस सबै सिर
दारो I
श्री रघुनाथ समेत सबै
दल, मोह भयो
यह संकट भारो
II
आनि खगेस तबै
हनुमान जु, बंधन
काटि सुत्रास निवारो
I
को नहीं जानत
है जग में
कपि, संकट मोचन
नाम तिहारो II
बंधु समेत जबै
अहिरावण, लै रघुनाथ
पातळ सिधारो I
देविहिं पूजि भलि
विधि सो बलि,
देउ सबै मिलि
मंत्र विचारो II
जाय सहाय भयो
तब ही, अहिरावण
सैन्य समेत संघारो
I
काज किये बड़
देवन के तुम,
वीर महाप्रभु देखि
बिचारो I
कौन सो संकट
मोर गरीब को,
जो तुम सों
नहिं जात है
टारो II
बेगि हरो हनुमान
महाप्रभु, जो कछु
संकट होय हमारो
I
को नहीं जानत
है जग में
कपि, संकट मोचन
नाम तिहारो II
लाल देह लाली
लसे ,अरु धरि
लाल लंगूर I
बज्र देह दानव
दलन,जय जय
जय कपि सूर
II
श्री-राम-सम्पूर्ण-चालीसा
tesu
09:32:00
|| श्री राम चालीसा ||
(Shri Ram Chalisa in Hindi)
श्री रघुवीर भक्त हितकारी। सुन लीजै प्रभु अरज हमारी॥
निशिदिन ध्यान धरै जो कोई। ता सम भक्त और नहिं होई॥1॥
ध्यान धरे शिवजी मन माहीं। ब्रह्म इन्द्र पार नहिं पाहीं॥
दूत तुम्हार वीर हनुमाना। जासु प्रभाव तिहूं पुर जाना॥2॥
तब भुज दण्ड प्रचण्ड कृपाला। रावण मारि सुरन प्रतिपाला॥
तुम अनाथ के नाथ गुंसाई। दीनन के हो सदा सहाई॥3॥
ब्रह्मादिक तव पारन पावैं। सदा ईश तुम्हरो यश गावैं॥
चारिउ वेद भरत हैं साखी। तुम भक्तन की लज्जा राखीं॥4॥
गुण गावत शारद मन माहीं। सुरपति ताको पार न पाहीं॥
नाम तुम्हार लेत जो कोई। ता सम धन्य और नहिं होई॥5॥
राम नाम है अपरम्पारा। चारिहु वेदन जाहि पुकारा॥
गणपति नाम तुम्हारो लीन्हो। तिनको प्रथम पूज्य तुम कीन्हो॥6॥
शेष रटत नित नाम तुम्हारा। महि को भार शीश पर धारा॥
फूल समान रहत सो भारा। पाव न कोऊ तुम्हरो पारा॥7॥
भरत नाम तुम्हरो उर धारो। तासों कबहुं न रण में हारो॥
नाम शक्षुहन हृदय प्रकाशा। सुमिरत होत शत्रु कर नाशा॥8॥
लखन तुम्हारे आज्ञाकारी। सदा करत सन्तन रखवारी॥
ताते रण जीते नहिं कोई। युद्घ जुरे यमहूं किन होई॥9॥
महालक्ष्मी धर अवतारा। सब विधि करत पाप को छारा॥
सीता राम पुनीता गायो। भुवनेश्वरी प्रभाव दिखायो॥10॥
घट सों प्रकट भई सो आई। जाको देखत चन्द्र लजाई॥
सो तुमरे नित पांव पलोटत। नवो निद्घि चरणन में लोटत॥11॥
सिद्घि अठारह मंगलकारी। सो तुम पर जावै बलिहारी॥
औरहु जो अनेक प्रभुताई। सो सीतापति तुमहिं बनाई॥12॥
इच्छा ते कोटिन संसारा। रचत न लागत पल की बारा॥
जो तुम्हे चरणन चित लावै। ताकी मुक्ति अवसि हो जावै॥13॥
जय जय जय प्रभु ज्योति स्वरूपा। नर्गुण ब्रह्म अखण्ड अनूपा॥
सत्य सत्य जय सत्यव्रत स्वामी। सत्य सनातन अन्तर्यामी॥14॥
सत्य भजन तुम्हरो जो गावै। सो निश्चय चारों फल पावै॥
सत्य शपथ गौरीपति कीन्हीं। तुमने भक्तिहिं सब विधि दीन्हीं॥15॥
सुनहु राम तुम तात हमारे। तुमहिं भरत कुल पूज्य प्रचारे॥
तुमहिं देव कुल देव हमारे। तुम गुरु देव प्राण के प्यारे॥16॥
जो कुछ हो सो तुम ही राजा। जय जय जय प्रभु राखो लाजा॥
राम आत्मा पोषण हारे। जय जय दशरथ राज दुलारे॥17॥
ज्ञान हृदय दो ज्ञान स्वरूपा। नमो नमो जय जगपति भूपा॥
धन्य धन्य तुम धन्य प्रतापा। नाम तुम्हार हरत संतापा॥18॥
सत्य शुद्घ देवन मुख गाया। बजी दुन्दुभी शंख बजाया॥
सत्य सत्य तुम सत्य सनातन। तुम ही हो हमरे तन मन धन॥19॥
याको पाठ करे जो कोई। ज्ञान प्रकट ताके उर होई॥
आवागमन मिटै तिहि केरा। सत्य वचन माने शिर मेरा॥20॥
और आस मन में जो होई। मनवांछित फल पावे सोई॥
तीनहुं काल ध्यान जो ल्यावै। तुलसी दल अरु फूल चढ़ावै॥21॥
साग पत्र सो भोग लगावै। सो नर सकल सिद्घता पावै॥
अन्त समय रघुबरपुर जाई। जहां जन्म हरि भक्त कहाई॥22॥
श्री हरिदास कहै अरु गावै। सो बैकुण्ठ धाम को पावै॥23॥
॥ दोहा॥
सात दिवस जो नेम कर, पाठ करे चित लाय।
हरिदास हरि कृपा से, अवसि भक्ति को पाय॥
श्री-हनुमान-चालीसा-अर्थ सहित
tesu
09:00:00
|| श्री हनुमान चालीसा ||
Shri Hanuman Chalisa
जय हनुमान ज्ञान गुण सागर, जय कपीस तिहुँ लोक उजागर ॥1॥
अर्थ: श्री हनुमान जी!आपकी जय हो। आपका ज्ञान और गुण अथाह है। हे कपीश्वर! आपकी जय हो!तीनों लोकों, स्वर्ग लोक, भूलोक और पाताल लोक में आपकी कीर्ति है।
राम दूत अतुलित बलधामा, अंजनी पुत्र पवन सुत नामा॥2॥
अर्थ: हे पवनसुत अंजनी नंदन! आपके समान दूसरा बलवान नहीं है।
महावीर विक्रम बजरंगी, कुमति निवार सुमति के संगी ॥3॥
अर्थ: हे महावीर बजरंग बली!आप विशेष पराक्रम वाले है। आप खराब बुद्धि को दूर करते है, और अच्छी बुद्धि वालो के साथी, सहायक है।
कंचन बरन बिराज सुबेसा , कानन कुण्डल कुंचित केसा॥4॥
अर्थ: आप सुनहले रंग, सुन्दर वस्त्रों, कानों में कुण्डल और घुंघराले बालों से सुशोभित हैं।
हाथ ब्रज और ध्वजा विराजे, काँधे मूँज जनेऊ साजै॥5॥
अर्थ: आपके हाथ मेंबज्र और ध्वजा है और कन्धे पर मूंज के जनेऊ की शोभा है।
शंकर सुवन केसरी नंदन, तेज प्रताप महा जग वंदन॥6॥
अर्थ: हे शंकर के अवतार!हे केसरी नंदन आपके पराक्रम और महान यश की संसार भर में वन्दना होती है।
विद्यावान गुणी अति चातुर,रान काज करिबे को आतुर ॥
अर्थ: आप प्रकान्ड विद्या निधान है, गुणवान और अत्यन्त कार्य कुशल होकर श्री राम काज करने के लिए आतुर रहते है।
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया॥
अर्थ: आप श्री राम चरित सुनने में आनन्द रस लेते है।श्री राम, सीता और लखन आपके हृदय में बसे रहते है।
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा,बिकट रूप धरि लंक जरावा॥
अर्थ: आपने अपना बहुत छोटा रूप धारण करके सीता जी को दिखलाया और भयंकर रूप करके लंका को जलाया।
भीम रूप धरि असुर संहारे, रामचन्द्र के काज संवारे॥
अर्थ: आपने विकराल रूप धारण करके राक्षसों को मारा और श्री रामचन्द्र जी के उद्देश्यों को सफल कराया।
लाय सजीवन लखन जियाये,श्री रघुवीर हरषि उर लाये॥
अर्थ: आपने संजीवनी बूटी लाकर लक्ष्मण जी को जिलाया जिससे श्री रघुवीर ने हर्षित होकर आपको हृदय से लगा लिया।
रघुपति कीन्हीं बहुत बड़ाई, तुम मम प्रिय भरत सम भाई॥
अर्थ: श्री रामचन्द्र ने आपकी बहुत प्रशंसा की और कहा की तुम मेरे भरत जैसे प्यारे भाई हो।
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं,अस कहि श्री पति कंठ लगावैं॥
अर्थ: श्री राम ने आपको यह कहकर हृदय से लगा लिया की तुम्हारा यश हजार मुख से सराहनीय है।
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा, नारद, सारद सहित अहीसा॥
अर्थ: श्री सनक, श्री सनातन, श्री सनन्दन, श्री सनत्कुमार आदि मुनि ब्रह्मा आदि देवता नारद जी, सरस्वती जी, शेषनाग जी सब आपका गुण गान करते है।
जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते, कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते॥
अर्थ: यमराज, कुबेर आदि सब दिशाओं के रक्षक, कवि विद्वान, पंडित या कोई भी आपके यश का पूर्णतः वर्णन नहीं कर सकते।
तुम उपकार सुग्रीवहि कीन्हा, राम मिलाय राजपद दीन्हा॥
अर्थ: आपने सुग्रीव जी को श्रीराम से मिलाकर उपकार किया , जिसके कारण वे राजा बने।
तुम्हरो मंत्र विभीषण माना, लंकेस्वर भए सब जग जाना॥
अर्थ: आपके उपदेश का विभीषण जी ने पालन किया जिससे वे लंका के राजा बने, इसको सब संसार जानता है।
जुग सहस्त्र जोजन पर भानू, लील्यो ताहि मधुर फल जानू॥
अर्थ: जो सूर्य इतने योजन दूरी पर है की उस पर पहुँचने के लिए हजार युग लगे।दो हजार योजन की दूरी पर स्थित सूर्य को आपने एक मीठा फल समझकर निगल लिया।
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहि,जलधि लांघि गये अचरज नाहीं॥
अर्थ: आपने श्री रामचन्द्र जी की अंगूठी मुँह में रखकर समुद्र को लांघ लिया, इसमें कोई आश्चर्य नहीं है।
दुर्गम काज जगत के जेते, सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥
अर्थ: संसार में जितने भी कठिन से कठिन काम हो, वो आपकी कृपा से सहज हो जाते है।
राम दुआरे तुम रखवारे, होत न आज्ञा बिनु पैसा रे ॥
अर्थ: श्री रामचन्द्र जी के द्वार के आप रखवाले है, जिसमें आपकी आज्ञा बिना किसी को प्रवेश नहीं मिलता अर्थात आपकी प्रसन्नता के बिना राम कृपा दुर्लभ है।
सब सुख लहै तुम्हारी सरना, तुम रक्षक काहू को डरना ॥
अर्थ: जो भी आपकी शरण मेंआते है, उस सभी को आन्नद प्राप्त होता है, और जब आप रक्षक है, तो फिर किसी का डर नहीं रहता।
आपन तेज सम्हारो आपै, तीनों लोक हाँक ते काँपै॥
अर्थ: आपके सिवाय आपके वेग को कोई नहीं रोक सकता, आपकी गर्जना से तीनों लोक काँप जाते है।
भूत पिशाच निकट नहिं आवै, महावीर जब नाम सुनावै॥24॥
अर्थ: जहाँ महावीर हनुमान जी का नाम सुनाया जाता है, वहाँ भूत, पिशाच पास भी नहीं फटक सकते।
नासै रोग हरै सब पीरा, जपत निरंतर हनुमत बीरा ॥25॥
अर्थ: वीर हनुमान जी!आपका निरंतर जप करने से सब रोग चले जाते है, और सब पीड़ा मिट जाती है।
संकट तें हनुमान छुड़ावै, मन क्रम बचन ध्यान जो लावै॥26॥
अर्थ: हे हनुमान जी! विचार करने में, कर्म करने में और बोलने में, जिनका ध्यान आपमें रहता है, उनको सब संकटों से आप छुड़ाते है।
सब पर राम तपस्वी राजा, तिनके काज सकल तुम साजा॥27॥
अर्थ: तपस्वी राजा श्री रामचन्द्र जी सबसे श्रेष्ठ है, उनके सब कार्यों को आपने सहज में कर दिया।
और मनोरथ जो कोइ लावै, सोई अमित जीवन फल पावै॥28॥
अर्थ: जिस पर आपकी कृपा हो, वह कोई भी अभिलाषा करे तो उसे ऐसा फल मिलता है जिसकी जीवन में कोई सीमा नहीं होती।
चारों जुग परताप तुम्हारा, है परसिद्ध जगत उजियारा॥ 29॥
अर्थ: चारों युगों सतयुग, त्रेता, द्वापर तथा कलियुग में आपका यश फैला हुआ है, जगत में आपकी कीर्ति सर्वत्र प्रकाशमान है।
साधु सन्त के तुम रखवारे, असुर निकंदन राम दुलारे॥30॥
अर्थ: हे श्री राम के दुलारे ! आप सज्जनों की रक्षा करते है और दुष्टों का नाश करते है।
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता , अस बर दीन जानकी माता॥31॥
अर्थ: आपको माता श्री जानकी से ऐसा वरदान मिला हुआ है, जिससे आप किसी को भी आठों सिद्धियां और नौ निधियां दे सकते है।
1.) अणिमा → जिससे साधक किसी को दिखाई नहीं पड़ता और कठिन से कठिन पदार्थ में प्रवेश कर जाता है।
2.) महिमा → जिसमें योगी अपने को बहुत बड़ा बना देता है।
3.) गरिमा → जिससे साधक अपने को चाहे जितना भारी बना लेता है।
4.) लघिमा → जिससे जितना चाहे उतना हल्का बन जाता है।
5.) प्राप्ति → जिससे इच्छित पदार्थ की प्राप्ति होती है।
6.) प्राकाम्य → जिससे इच्छा करने पर वह पृथ्वी में समा सकता है, आकाश में उड़ सकता है।
7.) ईशित्व → जिससे सब पर शासन का सामर्थ्य हो जाता है।
8.) वशित्व → जिससे दूसरों को वश में किया जाता है।
राम रसायन तुम्हरे पासा, सदा रहो रघुपति के दासा॥32॥
अर्थ: आप निरंतर श्री रघुनाथ जी की शरण में रहते है, जिससे आपके पास बुढ़ापा और असाध्य रोगों के नाश के लिए राम नाम औषधि है।
तुम्हरे भजन राम को पावै, जनम जनम के दुख बिसरावै॥33॥
अर्थ: आपका भजन करने सेर श्री राम जी प्राप्त होते है, और जन्म जन्मांतर के दुःख दूर होते है।
अन्त काल रघुबर पुर जाई, जहाँ जन्म हरि भक्त कहाई॥ 34॥
अर्थ: अंत समय श्री रघुनाथ जी के धाम को जाते है और यदि फिर भी जन्म लेंगे तो भक्ति करेंगे और श्री राम भक्त कहलायेंगे।
और देवता चित न धरई, हनुमत सेई सर्व सुख करई॥35॥
अर्थ: हे हनुमान जी!आपकी सेवा करने से सब प्रकार के सुख मिलते है, फिर अन्य किसी देवता की आवश्यकता नहीं रहती।
संकट कटै मिटै सब पीरा, जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥36॥
अर्थ: हे वीर हनुमान जी! जो आपका सुमिरन करता रहता है, उसके सब संकट कट जाते है और सब पीड़ा मिट जाती है।
जय जय जय हनुमान गोसाईं, कृपा करहु गुरु देव की नाई॥37॥
अर्थ: हे स्वामी हनुमान जी!आपकी जय हो, जय हो, जय हो!आप मुझपर कृपालु श्री गुरु जी के समान कृपा कीजिए।
जो सत बार पाठ कर कोई, छुटहि बँदि महा सुख होई॥38॥
अर्थ: जो कोई इस हनुमान चालीसा का सौ बार पाठ करेगा वह सब बन्धनों से छुट जायेगा और उसे परमानन्द मिलेगा।
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा, होय सिद्धि साखी गौरीसा॥ 39॥
अर्थ: भगवान शंकर ने यह हनुमान चालीसा लिखवाया, इसलिए वे साक्षी है, कि जो इसे पढ़ेगा उसे निश्चय ही सफलता प्राप्त होगी।
तुलसीदास सदा हरि चेरा, कीजै नाथ हृदय मँह डेरा॥40॥
अर्थ: हे नाथ हनुमान जी! तुलसीदास सदा ही श्री राम का दास है।इसलिए आप उसके हृदय में निवास कीजिए।
|| दोहा ||
पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुरभुप॥
अर्थ: हे संकट मोचन पवन कुमार! आप आनन्द मंगलो के स्वरूप है। हे देवराज! आप श्री राम, सीता जी और लक्ष्मण सहित मेरे हृदय में निवास कीजिए।
श्री-हनुमान-चालीसा-अर्थ सहित
tesu
09:00:00
|| श्री हनुमान चालीसा ||
Shri Hanuman Chalisa
जय हनुमान ज्ञान गुण सागर, जय कपीस तिहुँ लोक उजागर ॥1॥
अर्थ: श्री हनुमान जी!आपकी जय हो। आपका ज्ञान और गुण अथाह है। हे कपीश्वर! आपकी जय हो!तीनों लोकों, स्वर्ग लोक, भूलोक और पाताल लोक में आपकी कीर्ति है।
राम दूत अतुलित बलधामा, अंजनी पुत्र पवन सुत नामा॥2॥
अर्थ: हे पवनसुत अंजनी नंदन! आपके समान दूसरा बलवान नहीं है।
महावीर विक्रम बजरंगी, कुमति निवार सुमति के संगी ॥3॥
अर्थ: हे महावीर बजरंग बली!आप विशेष पराक्रम वाले है। आप खराब बुद्धि को दूर करते है, और अच्छी बुद्धि वालो के साथी, सहायक है।
कंचन बरन बिराज सुबेसा , कानन कुण्डल कुंचित केसा॥4॥
अर्थ: आप सुनहले रंग, सुन्दर वस्त्रों, कानों में कुण्डल और घुंघराले बालों से सुशोभित हैं।
हाथ ब्रज और ध्वजा विराजे, काँधे मूँज जनेऊ साजै॥5॥
अर्थ: आपके हाथ मेंबज्र और ध्वजा है और कन्धे पर मूंज के जनेऊ की शोभा है।
शंकर सुवन केसरी नंदन, तेज प्रताप महा जग वंदन॥6॥
अर्थ: हे शंकर के अवतार!हे केसरी नंदन आपके पराक्रम और महान यश की संसार भर में वन्दना होती है।
विद्यावान गुणी अति चातुर,रान काज करिबे को आतुर ॥
अर्थ: आप प्रकान्ड विद्या निधान है, गुणवान और अत्यन्त कार्य कुशल होकर श्री राम काज करने के लिए आतुर रहते है।
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया॥
अर्थ: आप श्री राम चरित सुनने में आनन्द रस लेते है।श्री राम, सीता और लखन आपके हृदय में बसे रहते है।
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा,बिकट रूप धरि लंक जरावा॥
अर्थ: आपने अपना बहुत छोटा रूप धारण करके सीता जी को दिखलाया और भयंकर रूप करके लंका को जलाया।
भीम रूप धरि असुर संहारे, रामचन्द्र के काज संवारे॥
अर्थ: आपने विकराल रूप धारण करके राक्षसों को मारा और श्री रामचन्द्र जी के उद्देश्यों को सफल कराया।
लाय सजीवन लखन जियाये,श्री रघुवीर हरषि उर लाये॥
अर्थ: आपने संजीवनी बूटी लाकर लक्ष्मण जी को जिलाया जिससे श्री रघुवीर ने हर्षित होकर आपको हृदय से लगा लिया।
रघुपति कीन्हीं बहुत बड़ाई, तुम मम प्रिय भरत सम भाई॥
अर्थ: श्री रामचन्द्र ने आपकी बहुत प्रशंसा की और कहा की तुम मेरे भरत जैसे प्यारे भाई हो।
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं,अस कहि श्री पति कंठ लगावैं॥
अर्थ: श्री राम ने आपको यह कहकर हृदय से लगा लिया की तुम्हारा यश हजार मुख से सराहनीय है।
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा, नारद, सारद सहित अहीसा॥
अर्थ: श्री सनक, श्री सनातन, श्री सनन्दन, श्री सनत्कुमार आदि मुनि ब्रह्मा आदि देवता नारद जी, सरस्वती जी, शेषनाग जी सब आपका गुण गान करते है।
जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते, कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते॥
अर्थ: यमराज, कुबेर आदि सब दिशाओं के रक्षक, कवि विद्वान, पंडित या कोई भी आपके यश का पूर्णतः वर्णन नहीं कर सकते।
तुम उपकार सुग्रीवहि कीन्हा, राम मिलाय राजपद दीन्हा॥
अर्थ: आपने सुग्रीव जी को श्रीराम से मिलाकर उपकार किया , जिसके कारण वे राजा बने।
तुम्हरो मंत्र विभीषण माना, लंकेस्वर भए सब जग जाना॥
अर्थ: आपके उपदेश का विभीषण जी ने पालन किया जिससे वे लंका के राजा बने, इसको सब संसार जानता है।
जुग सहस्त्र जोजन पर भानू, लील्यो ताहि मधुर फल जानू॥
अर्थ: जो सूर्य इतने योजन दूरी पर है की उस पर पहुँचने के लिए हजार युग लगे।दो हजार योजन की दूरी पर स्थित सूर्य को आपने एक मीठा फल समझकर निगल लिया।
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहि,जलधि लांघि गये अचरज नाहीं॥
अर्थ: आपने श्री रामचन्द्र जी की अंगूठी मुँह में रखकर समुद्र को लांघ लिया, इसमें कोई आश्चर्य नहीं है।
दुर्गम काज जगत के जेते, सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥
अर्थ: संसार में जितने भी कठिन से कठिन काम हो, वो आपकी कृपा से सहज हो जाते है।
राम दुआरे तुम रखवारे, होत न आज्ञा बिनु पैसा रे ॥
अर्थ: श्री रामचन्द्र जी के द्वार के आप रखवाले है, जिसमें आपकी आज्ञा बिना किसी को प्रवेश नहीं मिलता अर्थात आपकी प्रसन्नता के बिना राम कृपा दुर्लभ है।
सब सुख लहै तुम्हारी सरना, तुम रक्षक काहू को डरना ॥
अर्थ: जो भी आपकी शरण मेंआते है, उस सभी को आन्नद प्राप्त होता है, और जब आप रक्षक है, तो फिर किसी का डर नहीं रहता।
आपन तेज सम्हारो आपै, तीनों लोक हाँक ते काँपै॥
अर्थ: आपके सिवाय आपके वेग को कोई नहीं रोक सकता, आपकी गर्जना से तीनों लोक काँप जाते है।
भूत पिशाच निकट नहिं आवै, महावीर जब नाम सुनावै॥24॥
अर्थ: जहाँ महावीर हनुमान जी का नाम सुनाया जाता है, वहाँ भूत, पिशाच पास भी नहीं फटक सकते।
नासै रोग हरै सब पीरा, जपत निरंतर हनुमत बीरा ॥25॥
अर्थ: वीर हनुमान जी!आपका निरंतर जप करने से सब रोग चले जाते है, और सब पीड़ा मिट जाती है।
संकट तें हनुमान छुड़ावै, मन क्रम बचन ध्यान जो लावै॥26॥
अर्थ: हे हनुमान जी! विचार करने में, कर्म करने में और बोलने में, जिनका ध्यान आपमें रहता है, उनको सब संकटों से आप छुड़ाते है।
सब पर राम तपस्वी राजा, तिनके काज सकल तुम साजा॥27॥
अर्थ: तपस्वी राजा श्री रामचन्द्र जी सबसे श्रेष्ठ है, उनके सब कार्यों को आपने सहज में कर दिया।
और मनोरथ जो कोइ लावै, सोई अमित जीवन फल पावै॥28॥
अर्थ: जिस पर आपकी कृपा हो, वह कोई भी अभिलाषा करे तो उसे ऐसा फल मिलता है जिसकी जीवन में कोई सीमा नहीं होती।
चारों जुग परताप तुम्हारा, है परसिद्ध जगत उजियारा॥ 29॥
अर्थ: चारों युगों सतयुग, त्रेता, द्वापर तथा कलियुग में आपका यश फैला हुआ है, जगत में आपकी कीर्ति सर्वत्र प्रकाशमान है।
साधु सन्त के तुम रखवारे, असुर निकंदन राम दुलारे॥30॥
अर्थ: हे श्री राम के दुलारे ! आप सज्जनों की रक्षा करते है और दुष्टों का नाश करते है।
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता , अस बर दीन जानकी माता॥31॥
अर्थ: आपको माता श्री जानकी से ऐसा वरदान मिला हुआ है, जिससे आप किसी को भी आठों सिद्धियां और नौ निधियां दे सकते है।
1.) अणिमा → जिससे साधक किसी को दिखाई नहीं पड़ता और कठिन से कठिन पदार्थ में प्रवेश कर जाता है।
2.) महिमा → जिसमें योगी अपने को बहुत बड़ा बना देता है।
3.) गरिमा → जिससे साधक अपने को चाहे जितना भारी बना लेता है।
4.) लघिमा → जिससे जितना चाहे उतना हल्का बन जाता है।
5.) प्राप्ति → जिससे इच्छित पदार्थ की प्राप्ति होती है।
6.) प्राकाम्य → जिससे इच्छा करने पर वह पृथ्वी में समा सकता है, आकाश में उड़ सकता है।
7.) ईशित्व → जिससे सब पर शासन का सामर्थ्य हो जाता है।
8.) वशित्व → जिससे दूसरों को वश में किया जाता है।
राम रसायन तुम्हरे पासा, सदा रहो रघुपति के दासा॥32॥
अर्थ: आप निरंतर श्री रघुनाथ जी की शरण में रहते है, जिससे आपके पास बुढ़ापा और असाध्य रोगों के नाश के लिए राम नाम औषधि है।
तुम्हरे भजन राम को पावै, जनम जनम के दुख बिसरावै॥33॥
अर्थ: आपका भजन करने सेर श्री राम जी प्राप्त होते है, और जन्म जन्मांतर के दुःख दूर होते है।
अन्त काल रघुबर पुर जाई, जहाँ जन्म हरि भक्त कहाई॥ 34॥
अर्थ: अंत समय श्री रघुनाथ जी के धाम को जाते है और यदि फिर भी जन्म लेंगे तो भक्ति करेंगे और श्री राम भक्त कहलायेंगे।
और देवता चित न धरई, हनुमत सेई सर्व सुख करई॥35॥
अर्थ: हे हनुमान जी!आपकी सेवा करने से सब प्रकार के सुख मिलते है, फिर अन्य किसी देवता की आवश्यकता नहीं रहती।
संकट कटै मिटै सब पीरा, जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥36॥
अर्थ: हे वीर हनुमान जी! जो आपका सुमिरन करता रहता है, उसके सब संकट कट जाते है और सब पीड़ा मिट जाती है।
जय जय जय हनुमान गोसाईं, कृपा करहु गुरु देव की नाई॥37॥
अर्थ: हे स्वामी हनुमान जी!आपकी जय हो, जय हो, जय हो!आप मुझपर कृपालु श्री गुरु जी के समान कृपा कीजिए।
जो सत बार पाठ कर कोई, छुटहि बँदि महा सुख होई॥38॥
अर्थ: जो कोई इस हनुमान चालीसा का सौ बार पाठ करेगा वह सब बन्धनों से छुट जायेगा और उसे परमानन्द मिलेगा।
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा, होय सिद्धि साखी गौरीसा॥ 39॥
अर्थ: भगवान शंकर ने यह हनुमान चालीसा लिखवाया, इसलिए वे साक्षी है, कि जो इसे पढ़ेगा उसे निश्चय ही सफलता प्राप्त होगी।
तुलसीदास सदा हरि चेरा, कीजै नाथ हृदय मँह डेरा॥40॥
अर्थ: हे नाथ हनुमान जी! तुलसीदास सदा ही श्री राम का दास है।इसलिए आप उसके हृदय में निवास कीजिए।
|| दोहा ||
पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुरभुप॥
अर्थ: हे संकट मोचन पवन कुमार! आप आनन्द मंगलो के स्वरूप है। हे देवराज! आप श्री राम, सीता जी और लक्ष्मण सहित मेरे हृदय में निवास कीजिए।
Tuesday, 31 May 2016
Gayatri Mantra
tesu
23:22:00
|| गायत्री
मंत्र ||
Gayatri Mantra
ॐ भूर्भुवः स्व तत्सवितुर्वरेण्यं
भर्गो देवस्य धीमहि
गायत्री
मंत्र का अर्थ: Meaning of Gayatri Mantra in Hindi:-
कब करें गायत्री मंत्र का जाप:-
यूं तो इस बेहद सरल मंत्र को कभी भी पढ़ा जा सकता है लेकिन शास्त्रों के अनुसार इसका दिन में तीन बार जप करना चाहिए-
* प्रात:काल सूर्योदय से पहले और सूर्योदय के पश्चात तक
* फिर दोबारा दोपहर को
गायत्री मंत्र के फायदे :Benefits of Gayatri Mantra:-
हिन्दू
धर्म में गायत्री मंत्र को विशेष मान्यता प्राप्त है। कई शोधों द्वारा यह भी प्रमाणित किया गया है कि गायत्री मंत्र के जाप से कई फायदे भी होते हैं जैसे : मानसिक शांति, चेहरे पर चमक, खुशी की प्राप्ति, चेहरे में चमक, इन्द्रियां बेहतर होती हैं, गुस्सा कम आता है और बुद्धि तेज़ होती है।
गायत्री मन्त्र के जप से हमारे द्वारा किये गए पापों का नाश होता है,और मन की शांति भी प्राप्त होती है,और बोद्धिक विकास भी होता है,शारीरिक ऊर्जा प्राप्त होती है |
गायत्री मन्त्र के जप से हमारे द्वारा किये गए पापों का नाश होता है,और मन की शांति भी प्राप्त होती है,और बोद्धिक विकास भी होता है,शारीरिक ऊर्जा प्राप्त होती है |
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